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रविश कुमार को मेरा खुला पत्र

अमराई
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रविश जी,

आगे कुछ भी लिखने से पहले मैं आपको बता दूँ की यह चिठ्ठी गाली-गलौज या धमकी से भरी नहीं है, इसलिए आप अपने कीमती समय में से थोड़ा सा वक़्त निकालकर इसे एक बार जरूर पढें।

मेरी यह चिठ्ठी उस रविश कुमार के लिए है, जिसे मैं एक वक़्त इतना चाहता था कि उनका कोई भी एपिसोड देखना नहीं भूलता था। मेरी चिठ्ठी उस रविश कुमार के लिए है, जो मेरे ट्विटर या फेसबुक में लिखे हुए कमेंट को अगर कभी लाइक कर देते थे तो मैं बहुत खुश और उत्साहित हो जाता था। मेरी यह चिठ्ठी उस रविश कुमार के लिए है, जिन्होंने मेरे ट्वीट पर धन्यवाद भी लिखा तो ख़ुशी के मारे उस ट्वीट का स्क्रीन शॉट लेकर मैं अपने फेसबुक पर शेयर कर देता था। मेरी यह चिठ्ठी उस रविश कुमार के लिए है, जिनको सुनकर मुझे ऐसा लगता था की मेरी मातृभूमि की भाषा के लहजे में कोई बोल रहा है और उनसे भावनात्मक तौर पर आसानी से जुड़ जाता था। मेरी यह चिठ्ठी उसी रविश कुमार के लिए है, जिसे देखना अब मैंने बंद कर दिया है, जिसे आपकी ही तरह दिखाए किसी अंधकार में छोड़ देना ठीक समझा है।

मैं न तो डरा हुआ हूँ और ना ही मुझे आपसे कोई निजी या जातीय दुश्मनी है। आप भी एक सच्चे भारतीय हैं और मैं भी अपने आप को एक सच्चा भारतीय मानता हूँ। फर्क बस इतना है कि आप एक बड़ी पहचान बना चुके है और लोग आपको जानते हैं। आपके ऊपर गर्वित होने वाले देश के कुछ खास लोग भी है, जो आपकी बातों से बहुत प्रभावित रहते हैं। वहीँ मैं भीड़ में गुमनाम एक आम भारतीय हूँ जिसे अब आपकी बातें एकतरफा और ढकोसला लगती है।

वैसे तो आप आजकल अकसर चर्चा का विषय बने रहते हैं, लेकिन एक दिन अचानक आप मुझे ट्विटर पर ट्रेंड करते हुए दिखे। फिर मुझे दिल्ली के मुख्यमंत्री जी का ट्वीट पढ़ने को मिला जिसमे वो आपके ऊपर अपना गर्व जाहिर कर रहे थे। इतना काफी था मन में यह उत्सुकता जगाने के लिए की रविश जी ने जरूर कुछ खास बयान दिया है या ऐसा काम किया है जिसपर देश की जनता अपनी अलग अलग राय दे रही है। जैसा की मैंने आपको बताया, आपको और आप जिस चैनल से जुड़े है उसको देखना मैंने बहुत पहले बंद कर दिया था, लेकिन अच्छे तरीके से समझने के लिए मैंने आपका वो प्राइम टाइम शो देखा जिसमे आप आजकल देश में मची उथल पुथल को हवा देते हुए अंधकार में चले जाते हैं। मैंने आपकी हर बात अच्छे से सुनी, आपने जो भी कहा उसको समझने की कोशिश की और मुझे ये समझ में आ गया की आपने प्राइम टाइम कम दिखाया है और लोगो को भावनात्मक रूप से छूने की ज्यादा कोशिश की है। ये तो आप बहुत अच्छे से समझते होंगे की हम भारतीय किसी दृश्य को आँख से देखकर भी भले नज़रअंदाज़ कर जाये लेकिन भावनात्मक आंकलन बहुत जल्दी करते हैं और आपने भी लोगो के दिलों को छूने की ही कोशिश की है। जिस तरीके से अंधकार में जाकर आपने पार्श्व संगीत के साथ प्राइम टाइम को प्रस्तुत किया उसे देखकर वाकई आपने कुछ लोगो से बहुत वाहवाही लूटी होगी। पर यकीन मानिये लोग इसे भी भूल जायेंगे क्योकि आपने कुछ अलग तो किया है, पर खुद को मेरे जैसे कई भारतीयों से अलग भी कर लिया है। मुझे पूरा यकीन है कि आपका अंधकार से भरा प्राइम टाइम कई भारतीयों के दिल को छूने में पूरी तरह से नाकामयाब रहा है। आपका वो प्राइम टाइम शो एक छलावा था, एक धोखा था, जिसमें ये लोगो के दिलों पर चोट करके उनसे झूठा भावनात्मक रिश्ता जोड़ने की कोशिश करता है। आप अपने कुछ खास लोगो को भले ही खुश कर गए, लेकिन इन सब से आप सच्चे भारतीयों के जनसैलाब को खुश नहीं कर पाये बल्कि उन्होंने आपसे और भी दूरी बना ली।

आपने कहा कन्हैया एक गरीब माँ का बेटा है। एक गरीब माँ का बेटा गरीबी से आज़ादी के ही नारे लगाएगा और उसे देशद्रोही बताया जा रहा है जो बहुत शर्मनाक है। रविश जी मुझे लगता है आपने गरीब माँ के सच्चे सपूतों को देखा ही नहीं है, क्योकि आपने जिस गरीब परिवार के बेटे का चरित्र चित्रण किया है वह असल जिंदगी में गरीब परिवार के बेटे से मेल नहीं खाता। गरीब परिवार का बेटा नंगे पाँव थैले में किताबे लिए जब सरकारी स्कूल में जाता है तो वो अपने परिवार के लिए सोचता है कि उसे जीवन में कुछ ऐसा काम करना है जिससे वो अपने परिवार की गरीबी दूर कर सके। गरीब परिवार का बेटा पढाई करता है, मेहनत करता है ताकि वो अपने माँ बाप के लिए कुछ ऐसा करे जिससे कल को उन्हें गर्व हो अपने बेटे पर। एक गरीब परिवार में माँ अपने बेटे की बारिश में गीली हुई किताबे चूल्हे के किनारे सुखाती है जिसे पढ़कर उसके लाल का भविष्य संवर सके। एक गरीब परिवार का बेटा अपने माँ बाप के तकलीफो को समझता है, उनके द्वारा दैनिक जीवनयापन के लिए किये जा रहे संघर्ष को देखकर आहत होता है और अपने मन में दृढ निश्चय करता है की वो हुनरमंद बनेगा, अपने आप को इस लायक बनाएगा ताकि वो अपने परिवार को गरीबी से आज़ादी दिला सके और जब तक वो अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो जाता वो चैन की साँस नहीं लेता है। गरीब परिवार के बेटे की ज़िंदगी भले संघर्षपूर्ण हो, लेकिन फिर भी जब वो स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस में अपने विद्यालय में सुबह रैली में जाता है तो अपने देश के झंडे को देखकर गर्वित होता है और सबके साथ सुर मिलाकर ‘सारे जहाँ से अच्छा हिंदुस्तान हमारा’ गाता है। वो वन्दे मातरम का नारा लगाता है और इस गरीबी से जूझते समय भी उसकी दृढ सोच यह कहती है कि हमारा देश दुनिया का सबसे अच्छा देश है। एक गरीब माँ का बेटा गरीबी से लड़ने के लिए नेतागीरी नहीं करता साहेब। एक गरीब माँ का बेटा गरीबी से लड़ने के लिए मंच पर खड़ा होकर गरीबी से आज़ादी के लिए नारे नहीं लगाता है, एक गरीब माँ का बेटा भीड़ इकठ्ठा करके करके साम्राज्यवाद, सामंतवाद और पूंजीवाद से आज़ादी के नारे नहीं लगाता है। आपने कन्हैया जैसे बेटे को सहानुभूति देकर उन सभी गरीब बेटो का मजाक उड़ाया है जो अत्यंत गरीबी से लड़कर भी देश, समाज और अपने परिवार के लिए कुछ कर रहे हैं। इसके लिए देश के गरीब घर का कोई भी बेटा आपको अच्छी नजरों से कभी नहीं देखेगा।

माफ़ कीजियेगा मगर मुझे लगता है आप उस लायक ही नहीं है कि आप एक सरकारी स्कूल से पढ़े गरीब बेटे के संघर्ष को समझ सके। आप भले ही मेरी तरह उस प्रदेश से हैं जहाँ आज भी गरीबी और पिछड़ापन काफी ज्यादा है लेकिन आपने गरीबी अच्छे से देखी नहीं है। जाहिर है आप पटना के मिशनरी स्कूल से पढ़े हैं जहाँ आपने स्कूल की पोशाक पहने किताबे तो पढ़ी लेकिन एक गरीब के बेटे का चेहरा अच्छे से देख और पढ़ नहीं पाये। आप अपनी पत्रकारिता के लिए गरीबों के बीच कई बार उतरे और उनके साथ खाना भी खाए, लेकिन एक गरीब बेटे के सोच को समझने के लिए उसके दिल में कभी उतर नहीं पाये। उनका खाना खाकर भी उसके स्वाद को नहीं समझ पाये जिससे गरीबी में भी देशभक्ति की खुशबू आती है।

आपने उस वक़्त अंधकार में जाकर निष्पक्ष पत्रकारिता करते हुए उन छात्रों की आलोचना क्यों नहीं की जो सड़क पर बैठकर देश के प्रधानमंत्री को भड़वा और दल्ला जैसी गालियाँ दे रहे थे? आप तब अंधकार में क्यों नहीं गए जब एक मुख्यमंत्री हमारे देश के प्रधानमंत्री को गाली दे गया और “मैं गाँव का हुँ इसलिए मेरी भाषा ख़राब है” कह कर उन्होंने आज तक माफ़ी नहीं मांगी? उस अंधकार के शोर को सुनियेगा रविश जी क्योंकि हमने देश के प्रधानमंत्री के नाम के आगे श्री लगाना सीखा है और अगर आप ये नहीं दिखा पाये और नहीं समझ पाये तो आपके प्राइम टाइम में एक दिन अँधेरा रहे या हमेशा के लिए अँधेरा छाये, हमें कोई फर्क नहीं पड़ता है। पार्श्व संगीत देकर आप अपने प्राइम टाइम शो को नाटकीय बना सकते हैं, लेकिन उसे सच्चाई से नहीं जोड़ सकते। मैं गिटार के पार्श्व संगीत के साथ जब अपने टूटे फूटे स्वर में भी गाता हूँ, तो लोग उसे सुनकर अच्छा ही कहते हैं लेकिन सुर की समझ रखने वाला उसमे हज़ारो कमियाँ ढूंढ लेता है। एकतरफा दृष्टिकोण आपको एक तरफ ही रखेगी लेकिन अगर आप सबसे जुड़ना चाहते हैं तो आपको सबके मन के शोर को सुनने की जरुरत है। आप जैसे पत्रकारों को मिल रही धमकी और गाली से लोग आपको सहानुभूति नहीं देंगे क्योकि ये पूर्ण सत्य नहीं है। ऐसे फर्जी नाम से चल रहे लाखो अकाउंट है जो देश के प्रधानमंत्री को भी धमकी और गाली देते रहते हैं। आपने एकदम सही कहा की टीवी को टीबी हो गया है लेकिन उसे फ़ैलाने वाले आप जैसे पत्रकार हैं और यह बीमारी फैलाते-फैलाते आप खुद भी बहुत बीमार हो गए हैं। मेरी तरह आपसे मिलने की चाह रखने वाला हर सच्चा भारतीय अब आपको देखकर अपना मुँह फेर लेगा। आप अपनी बीमारी अपने बचे खुचे चाहने वालों तक ही सीमित रखिये क्योकि हमें वो अँधेरा पसंद नहीं है जो आप दिखाना चाहते हैं। हमें वह बीमारी पसंद नहीं है जिसे आप फैला रहे है। हम उजाले में रहना चाहेंगे और उनके साथ खड़े होना पसंद करेंगे जो वन्दे मातरम कहते समय गर्वित होते हैं, जो भारत माता की जय कहते हुए देश के झंडे का सम्मान करते हैं, भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता को बनाये रखने की बात करते हैं और देश के एकीकरण के लिए अपना सर्वश्व योगदान देते हैं।

वन्दे मातरम !

आपका पूर्व प्रशंसक,

@01karn

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