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कन्हैया के आधारहीन नारों का समर्थन करने वाले एक बार जरूर पढ़ें ..

अमराई
अमराई
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आप सब इस बात की सच्चाई को बहुत अच्छे से जानते हैं कि हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। अपने आस पड़ोस हो रही कितनी ही घटनाओ में हम इसका जिक्र कर देते हैं। बुद्धिजीवी वर्ग से भी अक्सर यह ज्ञान सुनने को मिलता है कि हमें किसी भी घटना का बस वह पहलू नहीं देखना चाहिए जो उजागर हो रहा है। हमें किसी भी चीज का वर्गीकरण आँखों से देखते ही या कानों से सुनते ही नहीं करना चाहिये, क्योकि अधिकांश मामलो में एक पहलू सही होता है और दूसरा गलत। क्या कभी आपने यह सोचा है कि अगर सिक्के के दोनों पहलू गलत हो जाए तो किस पहलू को ज्यादा तवज्जो देना चाहिए। क्या किसी बड़े अपराध को दबाने के लिए छोटे-मोटे अपराध की अनदेखी कर देनी चाहिए?

JNU में पिछले कुछ दिनों से जो हलचल मची हुई है, उससे हम सब भली भांति परिचित है। हम सब एक असमंजस में फंसे हैं कि आखिर कौन सा वीडियो सही है और कौन सा चैनल सही न्यूज़ दिखा रहा है। कई राजनितिक पार्टियों का विरोध चरम पर है, हर विपक्षी पार्टी ये दावा कर रही है कि कन्हैया को झूठे देशद्रोह के मामले में फँसाया जा रहा है। उसने ऐसा कोई भी नारा नहीं लगाया जो देशद्रोह साबित करता हो। वर्तमान सरकार लोगो से बोलने की आज़ादी छीन रही है और आम जनता को अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं है। मीडिया के कई स्रोतों से हमें ये देखने और सुनने को मिलता है की कन्हैया ने साम्राज्यवाद, सामंतवाद, संघवाद, ब्राह्मणवाद, मनुवाद, पूँजीवाद, दंगाइयों और भूखमरी से आजादी के नारे लगाये हैं। ऐसे में सवाल यह उठता है की कन्हैया के जिन नारो को दिखाकर अधिकांश मिडिया वाले जनता को बरगला रहे हैं, क्या हम उन नारों के अर्थ से भली भांति परिचित हैं? आप सभी ने भी 9वीं कक्षा के नागरिकशास्त्र में उपरोक्त सभी शब्दों की परिभाषायें जरूर पढ़ी होंगी। अगर धूमिल हो गयी है तो कोई बात नहीं। मैं आपको याद कराये देता हूँ, ताकि आप सिक्के के इस दूसरे पहलू को आसानी से समझ सकें और आपको यह ज्ञात रहे कि जिन नारों को दिखाकर कन्हैया को बचाया जा रहा असल में वो भी एक तरह विद्रोह है, अनैतिक है और उसका आज के भारत में कोई औचित्य नहीं बनता। जिस आज़ादी की बात को दिखाकर आपको भ्रमित किया जा रहा है आइये उनके अर्थ को समझने की कोशिश करते हैं

साम्राज्यवाद – शक्तिशाली एवं उन्नत देशों द्वारा कमजोर तथा पिछड़े देश पर अधिकार करके वहाँ की जनता के हितों के बजाय अपने हितों के लिए शासन करना ।
अगर कन्हैया ने 1947 के पहले साम्राज्यवाद के नारे लगाये होते तो उसका औचित्य बनता। इस आज़ाद और लोकतान्त्रिक देश में साम्राज्यवाद से आज़ादी के नारे लगाकर वो किसे बेवकूफ बना रहा था?

सामंतवाद – आज के भारत में इसका कोई मूल अर्थ नहीं बनता है। लोग अक्सर सामंतवाद शब्द का प्रयोग इसके विशिष्ट अर्थ से परे विद्रोह की भावना जाहिर करने के लिए करते है। 17वीं शताब्दी के आसपास इस शब्द का अर्थ बनता था क्योंकि, न्याय प्रणाली राजा के हाथों में होती थी जिसके नीचे कई कोटि के सामंत होते थे और सबसे नीचे किसान और मजदूर।
क्या आपको लगता है कि हमारे समाज में सामंतवाद आज भी पनप रहा है। हम तो जमींदारी प्रथा का भी अंत कर चुके है। फिर कन्हैया को हमारे लोकतान्त्रिक देश के किस सामंतवाद से आज़ादी चाहिए?

मनुवाद – मनु दरअसल एक सिद्धांत है। अधिकांश लोगो में यह भ्रम है की मनु-सिद्धांत और मनुवाद एक ही चीज़ है। सिद्धांत का अर्थ होता है कोई ऐसी चीज़ जिस का सत्यापण हो गया हो और वाद का अर्थ होता है परंपरा। मनु कोई एक व्यक्ति विशेष नहीं थे, बल्कि वो एक क्षत्रिय थे और इतिहासकारो की माने तो एक नहीं बल्कि अनेक थे। मनु-स्मृति में योग्यता को सर्वोपरि रखा गया है, लेकिन टुच्चे टपोरी और मौकापरस्त राजनीतिज्ञों ने इसे अपने फायदे के लिए समय समय पर इस्तेमाल किया है।
सवाल यह उठता है कि क्या कन्हैया को मनुवाद का सही मतलब नहीं पता था? अगर पता था तो वो राजनितिक पार्टियों के भेड़ चाल में शामिल होकर बेकार का हंगामा क्यों कर रहा था ?

ब्राह्मणवाद – जब किसी व्यक्ति को उसके गुणों के आधार पर नहीं चुनकर किसी नियम, कानून, जाति, परिवार, परंपरा, रंग, नस्ल, प्रान्त, भाषा इत्यादि के आधार पर किसी विशेष कार्य के लिए चुना जाता है तो उसे ब्राह्मणवाद कहते हैं। जैसे पुजारी बनने के लिए ब्राह्मण कुल में पैदा होना ।
कन्हैया को ब्राह्मणवाद का सही मतलब पता था तो सबसे पहले उसे उन राजनितिक परिवारों के खिलाफ आवाज़ उठानी चाहिए थी, जहाँ देश के नेता अपने बेटे-बेटियों को राजनीती के व्यवसाय में धरल्ले से उतार रहे हैं।

पूंजीवाद – पूंजीवाद आर्थिक प्रणाली की वो बीमारी थी जिसमे उत्पादन के साधन पर निजी स्वामित्व बनाकर उस से आने वाले सभी आय पर किसी व्यक्ति विशेष का एकछत्र अधिकार होता है। जमींदारी प्रथा को उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है।
मोहल्ले के बच्चों के खेल में आपने अक्सर सुना होगा, मेरा बैट है मैं घर जा रहा हूँ, इसलिए खेल खत्म। मतलब मेरी चीज़, मेरा नियम कानून और मेरे फायदे।हम अक्सर बहकावे में आकर अनैतिक मांगे रख देते हैं। कोई भी मांग देश या समाज के ऊपर नहीं होती। ये तो हमारी बुद्धिमत्ता होनी चाहिए कि हम जो मांग रखें, उसे सभी राजनितिक पार्टियाँ बिना किसी विद्रोह के समर्थन दे। यहाँ मैं बहुत ही आदर्श परिस्थिति की बात कर रहा हूँ, परन्तु ये तो अवश्य संभव है की हम तर्कसंगत मांगो को सरकार के समक्ष रखें।

संघवाद से आजादी का तात्पर्य तो सब समझ ही रहे होंगे कि वो साफ़ तौर पर आरएसएस की बात कर रहा था। हमलोग इस बात को तो नहीं झुठला सकते की आरएसएस एक संगठन है और हमें आजादी है कि हम उसकी शाखा में जायें या ना जायें। हम संघ के विचारों से सहमत हों या नहीं हों । भारत में संघ का प्रभुत्व आखिर है ही कितना !
क्या आपको लगता है कि संघ और अँगरेज़ एक ही जैसे हैं जो हमारे अधिकारों को छीन कर साम्राज्यवाद ला रहे हैं देश में? अगर सही में हमारे देश में आरएसएस का राज़ होता, तो पुलिस से पहले कन्हैया को संघ के लोग पकड़कर ले जाते।

दंगाईयो से आजादी आप लोगो को भड़काकर नहीं पा सकते। लोगो में जागरूकता आये इसके लिए मंच पर खड़े होकर झूठे नारे लगाने की नहीं, बल्कि लोगों की सोच को परिपक्व बनाने से होगा ताकि वो सही और गलत का फर्क कर सके। लेकिन यह बड़ी अजीब विडंबना है कि आप दंगाईयो से आज़ादी की बात करते हैं, लेकिन खुद ही लोगो को इकठ्ठा करके उनको भड़काते हैं और हंगामा कर के लड़ाई-झगडे का माहौल बना देते हैं।

गरीबी से आजादी के लिए कन्हैया को देश का ऐसा संस्थान मिला है, जहाँ से पढ़कर वो अपने परिवार, समाज और देश की सेवा कर सकता है। JNU जैसे संस्थान में दाखिले के लिए कठिन इम्तिहान देना पड़ता है, फिर कक्षा 9 के नागरिकशास्त्र में पढ़ी बात को कन्हैया कैसे भूल सकता है? कन्हैया का विषय दक्षिण अफ्रीका में सामाजिक बदलाव के ऊपर था, और इसकी पढाई में वो भारत के कौन से साम्राज्यवाद, सामंतवाद, पूँजीवाद और संघवाद के ऊपर पीएचडी कर रहा था। जो छात्र उसके साथ आजादी के नारे लगा रहे थे, क्या वो भी इतने मूर्ख हैं कि उन्हें इन नारो का मतलब नहीं पता?

सिक्के के इस दूसरे पहलू को पकड़ कर चलें तो भी कन्हैया बेकसूर तो बिलकुल नहीं है, क्योकि अगर आप समाज में गलत धारणाएं पैदा कर रहे हैं और लोगो तक गलत सन्देश पंहुचा रहे हैं, तो वह भी एक अपराध है। अगर समाज में उपरोक्त में से कुछ भी जिन्दा है, तो उसे ख़त्म करने के लिए हमें एकजुट होना होगा और जागरूक रहना पड़ेगा ताकि उससे हमारे देश का कानून निपट सके। अपने अंदर जागरूकता लाने के लिए आपको हर कदम सचेत रहना होगा और अपने विवेक से काम लेना होगा। गरीबी एक ऐसी चीज़ है जो आज भी हमारे देश में बड़े पैमाने पर है लेकिन गरीबी से लड़ने के लिए कमजोर हिस्सों को सशक्त करना पड़ेगा। इस तरह झुण्ड में खड़े होकर गरीबी से लड़ने के नारे लगाकर आप गरीबी भगाने से तो रहे।

जरा सोचिये क्या आप जानते हैं संसद हमले में जो महिला कांस्टेबल शहीद हुई थी उनका नाम कमलेश कुमारी था? क्या आपको पता है उनकी दो बेटियाँ हैं जिनका नाम ज्योति और श्वेता है? अगर इनको आप इंटरनेट पर ढूंढेंगे तो आपको नहीं के बराबर जानकारी मिलेगी।

जिन लोगों ने आपके देश में लोकतंत्र के मंदिर की रक्षा के लिए अपनी जान दे दी उनके बारे में आपको याद भी नहीं है लेकिन संसद हमले का आतंकवादी अफजल गुरु जिसको फाँसी हो चुकी है, उसका बेटा भी मीडिया की सुर्खियां बटोर लेता है और उसके बारे में दिखाकर मीडिया चाहती है की आप उसे सहानुभूति की नज़र से देखें। ऐसा आखिर क्यों है की अब्दुल कलाम के परिवार के बारे में अच्छे से नहीं जानते लेकिन कन्हैया की माँ ३००० कमाती है ये सबको पता चल जाता है।

आज के बिकाऊ मीडिया की सच्चाई अत्यंत कमजोर है और उसे वास्विकता के चश्मे से देखने के लिए बस आपको जागरूक रहना होगा। इनके झूठ और मक्कारी के किस्सों से बचिए। आप लिखकर रख लीजिये कि कल को ये राजनितिक पार्टियाँ कन्हैया को जरूर नेता बना देंगी और उसके मन में वर्तमान सरकार और न्याय व्यवस्था के प्रति घृणा भर दी जाएगी। ये इसी तरह अफज़ल के बेटे को भी राजनीती में लाएंगे और सहानुभूति दिखाकर वोट बटोरने की कोशिश करेंगे। अब भी वक्त है, हम जागरूक हो जायें और सही गलत में फर्क करना सीख लें, वरना ये लोग इसी तरह कन्हैया जैसे गीदड़ को आदमखोर भेड़िया बनाकर हमारे बीच छोड़ते रहेंगे।

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