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बिहार आँखो देखी : कचरे के ढेर में सड़ता सुशासन

अमराई
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गाँधी जी ने कहा था स्वच्छता, भक्ति से बढ़कर है। लेकिन बिहार एक ऐसा राज्य है जहाँ स्वच्छता का नामोनिशान दूर-दूर तक नहीं दिखता। गाँव और छोटे शहरों की गंदगी तो चरम सीमा पर है ही, राजधानी पटना तक की सड़कें और गालियाँ गंदगी से बजबजा रही है। वैसे पटना शहर का नाम भारत के सबसे गंदे शहरो में से एक है लेकिन सिर्फ राजधानी ही नहीं, बल्कि यहाँ हर शहर और गाँव गंदगी से भरे पड़े हैं और इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं है।

बिहार के किसी भी रेलवे स्टेशन या बस स्टैंड पर चले जाइए, गुटका, तम्बाकू और सिगरेट के पन्नियों का चटाई बिछा हुआ है। जर्जर बसें और ट्रक धुएँ का ज़हर उगलते हुए सड़क पर दौड़ रही है लेकिन इनसे हो रहे प्रदुषण और PUC के कागजात की जाँच करने वाला अधिकारी नहीं दिखाई देता। बिहार राज्य के किसी भी शहर में चले जाइए सबसे ज्यादा भीड़ वाली जगह पर सड़क के बीचों-बीच सड़ते हुए पानी का नाला बहता हुआ दिख जाएगा। सालों  से पड़े कूड़े का ढेर कहीं भी सड़क पर मिलेगा जिसे नगर निगम के किसी कर्मचारी ने उठाने की सुध कभी नहीं ली होगी।

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यहाँ के गाँव की बात करे तो स्थिति वैसी ही बदतर है। केंद्र सरकार के शौचालय बनवाने की मुहिम का विरोध, लालू-नीतीश सरकार ने शौचालय नहीं बनवाकर किया है। सड़क के किनारे शौच करते बूढ़े, बच्चे और महिलायें बिहार के बदहाली की शर्मनाक तस्वीर पेश करते हैं। कुछ गाँव में गलती से घोटाले की मार सहकर घटिया कोटि की सड़के बन गयी है और उन टूटे फूटे पक्के रास्तो पर खुले में किये गए शौच की दुर्गन्ध आपको रास्ता बदलने पर मजबूर कर देंगे। यहाँ के क्षेत्रीय जिले की तंग गलियों से बहते नालो की सफाई सदियों से नहीं की गयी है। ये तस्वीरें देख, बिहार की बदहाली का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। इन्हें देखकर ऐसा लगता है प्रधानमंत्री मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान का बिहार सरकार ने अच्छा-खासा मजाक बना रखा है।

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ये तस्वीरें शहर के बाहर के किसी गटर की नहीं, बल्कि जिले के सबसे व्यस्त चौक-चौराहे का है जिसके एक तरफ प्रशिद्ध शासकीय स्कूल है और दूसरी तरफ स्टेट बैंक और IDBI जैसे सरकारी बैंक। । जिन गलियो की तस्वीर दिखाई गयी है वो सुनसान नहीं रहती, बल्कि इन्ही गली में प्रशिद्ध व्यापारियों का घर और दुकान होता है। बीमारियों को बढ़ावा देते इन कूड़े और बजबजाती गंदगी की साफ़-सफाई करने का कोई नहीं सोचता। सवाल उठता है क्या ये जिम्मेदारी बस सरकार की है? यहाँ के आम इंसान साफ़ सफाई में रहना पसंद नही करते? स्वच्छता तो सभी को पसंद होगी लेकिन यहाँ आगे बढ़ने को कोई तैयार नहीं होता क्योकि अगर किसी ने झाड़ू उठाया तो उसे धमकाकर उसका झाड़ू छीनने वाले कई आ जायेंगे। समाज कल्याण को नेतागिरी का नाम देकर छुटभैये नेता उसकी धुनाई कर देंगे और इस डर से भी लोग आगे आने में कतराते है। यहाँ ऐसे नवाबो की भी कमी नहीं है जिनके पेट में खाने को भले दाना नहीं हो लेकिन टिनहा हीरो बनकर नेतागिरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते और फिर भला स्वच्छता जैसा छोटा काम वो क्यों करेंगे।

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चुनाव जीतने के बाद नेता कभी गलती से अपने क्षेत्र पहुँच जाते हैं, तो वो भी मंच से उतरने के बाद सीधे अपनी AC गाड़ियों में नाक पर रुमाल डाले इन गंदगी को अनदेखा करते हुए निकल जाते हैं। मुख्यमंत्री दौरे पर पंचवर्षीय योजना के तहत आते हैं और वो हेलीकॉप्टर से मंच और मंच से हेलीकॉप्टर तक की दूरी रेड कारपेट पर करके निकल जाते है। वो यहाँ की गन्दगी तो दूर यहाँ की बदहाल सड़को की भी सुध नहीं लेते है। बिहार सरकार ना तो गुंडो पर नकेल कस सकी है और ना ही प्रशासन को अच्छे से चला पा रही है। सदियों से उदासीन रहा बिहार राज्य आज भी विकास और स्वच्छता के नाम पर उदासीन है। यह राज्य हमें सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर इस राज्य में नगरपालिका नामक कोई संस्था है भी या नहीं। नगरपालिका के नाम पर लाखों-करोडों का घोटाला खुले आम हो रहा है और निगम के अधिकारी के साथ यहाँ के नेता सारा पैसा अपने जेब में भर रहें हैं क्योंकि सफाई का काम तो बिहार में होता ही नहीं है।

अगर हर नेता और कर्मचारी अपना काम जिम्मेदारी से करे तो देश का हर राज्य सुंदरता की मिसाल बन जायेगा। लेकिन सत्ता का लालच और अपनी महत्वाकांक्षाओ से ऊपर उठना लालू और नितीश जैसे बिहार के बड़े नेताओ की फितरत में कभी रहा ही नहीं और यही कारण है बिहार हर क्षेत्र में आज भी उतना ही पिछड़ा हुआ है जितना आज से 4 दशक पहले पिछड़ा हुआ था। सुशासन बाबू की उपाधि मात्र पा लेने से सुशासन बिहार में कायम नहीं हो जायेगा। केंद्र सरकार को हर मसले पर दोष और घेरने के बजाय अगर वो अपने प्रदेश की सुध लेंगे तो वो बिहार के हित में होगा क्योकि जैसी गन्दगी बिहार में आपको देखने को मिलेगी उस से यही समझ में आता है कि कूड़े के ढेर, कचरे और बजबजाती गंदगी पर मख़मल का क़ालीन बिछाये नीतीश सरकार सिर्फ सुशासन का दिखावा कर रही हैं, असल में यहाँ सुशासन का नामोनिशान भी नहीं है।

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